झन जा तै बेटा Lyrics | कवरू नगर मत जा |

कहानी छत्तीसगढ़ी बोलचाल म
कहानी के सुरूआत:
"झन जा तै बेटा, कवरू नगर के तै गांव झन जा तै बेटा.."
ए गीत ह जब गांव के जस-गीत म बाजे लागथे, त मइया मन के आंखी अपन आप भींज जाथे।
काबर? काबर कि ए गीत म ओ पीरा हे – जे मइया अपन बेटा के परदेश नई जाय करके समझावत हवय।
आज मंय तोला एही गीत म बसा कहानी सुनाहूं –
एक मइया के मन के बात, एक बेटा के सपना, अउ दुनो के बीच के संघर्ष।
👩👦 गांव के मालती दाई अउ ओकर बेटा राजू
मालती दाई के एके बेटा रहिस – राजू।
गरीबी रिहीस, फेर मइया ले भरपूर मया मिलत रिहीस।
राजू पढ़-लिख के अब जवान हो गे रहिस। काम बर हर दिन सोचत रहिस।
एक दिन ओ अपन मइया ले कहिथे –
"दाई! मंय बंगाल जाथं, एक ठन संगवारी कहिस हे, उंहा काम म बढ़िया पैसा मिलथे।"
मालती दाई के मन ह कांप गे।
ओ कहिथे –
"बेटा! बंगाल? एतका दूर? काबर जाथस? गांव म काम कर ले, खेत-खार हवय।"
मइया के मन के डर – गीत म केहे गे बात
"यहो देश बंगाला नारी मन के, लगजाही तोला छांव..."
मइया डरात रहिस – बेटा परदेश जाही, तंय पराया मया म फंस जाबे।
"बेटा, ओतके मोहिनी तिरिया मन हावंय उंहा, तंय फंस जाबे अउ मोला भुला देबे।"
राजू मुस्कुरा के कहिस –
"दाई, अइसन नइ होही, मंय तोर ला कभू नइ भुलाहूं।"
दूरी अउ पराया देश – सात समुंदर के पार
🎵 "देश बंगाला दूरीहा हे बेटा, सात समुंदर के पार रे.."
मइया कहिथे –
"बेटा, बंगाल म एक बेर गे के बाद मनखे फेर नई लौटे। मया म फंस जाथे, गांव के राह भुला जाथे। मंय तोर बिना कैसे रहंव?"
राजू कहिस –
"दाई, मंय कमाके तोर बर सब करहूं।"
मइया ह झन बोले फेर आंखी भर आइस।
🌙 रात के पुरुष – दिन के बैल
"कवरू नगर के तिरिया हे, काई मन के ओकर मैला रे..."
मइया कहिथे –
"बेटा, परदेश के तिरिया चालाक होथे।
रात म तोला पुरुष समझही, अउ दिन म बैल बनाके काम कराही।
तोला अपन बना लेही, फेर जब मन भर जाही, छोड़ देही।"
🏡 गांव के सुख, घर के चैन
"राज हमर राज शाही हावे, सुख के राज चला रे.."
मइया अपन मन के बात कहिथे –
"हमर गांव म सुख हे बेटा, अपन खेत हवय, अपन आंगन हवय।
कऊनो बात के डर नइ, न फरेब, न धोखा।"
"तंय बंगाल जाके का करबे? दुख पाबे, अनजाना बन जाबे।"
🍼 ममता के कर्ज – दूध के उधारी
"मोर दूध के कर्जा हे बेटा, हावय तोर उधारी रे.."
मइया आंखी म आंसू ले कहिथे –
"बेटा, मंय तोला दूध पियाके, कोरा म पाल के, लड़ के बड़ा करंव।
अब तंय मोला छोड़ के परदेश जाथस?
मोर बुढ़ापा म मोला कऊन सम्हालही?"
राजू चुप हो जाथे। ओला कुछो बोल नइ निकलथे।
राजू के फैसला – मोड़ म मोड़
राजू अपन झोला ला खोल देथे, अउ धीरे से कहिथे –
"दाई! मोर बंगाल तोर आंचल म हे।
मंय कहीं नइ जाथं। मंय तोर सेवा करहूं।"
मालती दाई के चेहरा म चमक आ जाथे।
🧾 कहानी के सार:
"झन जा तै बेटा" सिरिफ गीत नइ हे,
ओ मइया के मन के आवाज, चिंता, अउ ममता के असली रूप हे।
परदेश जाय बर सोचइया हर बेटा ला ए बात सोचना चाही –
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