"कोरी कोरी नरियर चढ़े | छत्तीसगढ़ी देवी गीत अर्थ और कहानी | CG Bhakti Lyrics"
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गीत -कोरी कोरी नरियर चढ़े
गीतकार -दिलीप षदंगी
संगीत -दिलीप षदंगी
निर्देशक -श्री राम राठौर
निर्माता -श्री राम राठौर
वेबसाइट -www.cgjaslyrics.com
वेबसाइट ऑनर -के के पंचारे
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lyrics-kori kori nariyal chadhe
lyricsts-dilip sadangi
singer- dilip sadangi
music-dilip sadangi
director-shri ram rathor
producer-shri ram rathor
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हे कोरी कोरी नरियर चढ़े
मुखड़ा
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
कोरस - कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
केरा गांव मा अकोला छांव मा
कोरस - केरा गांव मा अकोला छांव मा
माई बिराजे हे द्वारी खोले
हे कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
कोरस - कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
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अंतरा-1
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चैत महिना चुरमा चिंरौजी
बैसाख बरफी बूंन्दिया बालुसाही
जेठ जलेबी चुआरी लाडू
असाड़ महिना अनरसा लाहूं
कोरस - चैत महिना चुरमा चिंरौजी
बैसाख बरफी बूंन्दिया बालुसाही
जेठ जलेबी चुआरी लाडू
असाड़ महिना अनरसा लाहूं
हे सावन मा सक्कर पारा
कोरस - ये दाई ओ सावन मा सक्कर पारा
भादो मां भुजिया भुईमुंग महके
कोरस - भादो मां भुजिया भुईमुंग महके
मन ला मोहे मोर मन ला मोहे
कोरी कोरी नरिहर चढ़े
हे दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
कोरस - कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
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अंतरा-2
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कुंवार मा केसर लाडु बनावै
कार्तिक करि लाडु काजु खवावै
अगहन अरसा ठेठरी गुजिया ला
उसमा पेड़ा पपरची चढ़ावै मोतीचुर
कोरस - कुंवार मा केसर लाडु बनावै
कार्तिक करि लाडु काजु खवावै
अगहन अरसा ठेठरी गुजिया ला
उसमा पेड़ा पपरची चढ़ावै मोतीचुर
मांघ मा मोहन भोगा
कोरस - ये मोतीचूर मांघ मा मोहन भोगा
बारह महिना बारह भोगा
कोरस - बारह महिना बारह भोगा
लाली चुनरीया संग चुरी चढ़े
हे कोरी कोरी नरिहर चढ़े
कोरस - कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
केरा गांव मा अकोला छांव मा
कोरस - केरा गांव मा अकोला छांव मा
माई बिराजे हे द्वारी खोले
हे कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
कोरस - कोरी कोरी नरियर चढ़े
ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े
गीत - कोरी कोरी नरियर चढ़े | अर्थ छत्तीसगढ़ी मं
मुखड़ा अर्थ:
"हे कोरी कोरी नरियर चढ़े" –
साफ-सुथरा नया नारियल देवी के चरणों मं चढ़ाए जावत हे।
"ये दाई ओ लाली लाली चुनरी ओढ़े" –
हमर मइया ल लाल चुनरी ओढ़े देखके मन पुलकित हो जाथे।
"केरा गांव मा अकोला छांव मा, माई बिराजे हे द्वारी खोले" –
माई के मंदिर के ठांव ह सुग्घर अकोला के पेड़ के छांव मं हे, जिहां मइया अपन द्वार खोले बिराजमान हवंय।
🌾 अंतरा 1: महीना-महीना के प्रसाद के बखान
चैत महिना चुरमा चिंरौजी –
चैत्र महीना मं देवी ला चुरमा, चिंरौजी जैसे पकवान चढ़ाए जाथे।
बैसाख बरफी बूंन्दिया बालुसाही –
बैसाख मं मीठा-मीठा बरफी, बूँदिया अउ बालूशाही।
जेठ जलेबी चुआरी लाडू –
जेठ महीना मं जलेबी, चुआरी अउ लड्डू के भोग।
असाड़ अनरसा लाहूं –
असाढ़ मं अनरसा अउ लाहू चढ़थें।
सावन मा सक्कर पारा –
सावन मं मीठा सक्करपारा के भोग चढ़थे।
भादो मां भुजिया भुईमुंग –
भादो मं भुजिया अउ भुईमूंग (मूंगफली) के महक देवी ला अर्पित होथे।
🔸 ए सब पकवान देवता ला श्रद्धा पूर्वक चढ़ा के भक्त अपन मन के भक्ति ला प्रकट करथे।
🌸 अंतरा 2: और महीनों के भोग
कुंवार मा केसर लाडु बनावै –
कुंवार महीना मं केसर वाले लड्डू बनाके देवी ला चढ़ात हवंय।
कार्तिक करि लाडु काजु खवावै –
कार्तिक मं करीलाडू अउ काजू के मिठाई चढ़थे।
अगहन अरसा ठेठरी गुजिया –
अगहन मं अरसा, ठेठरी अउ गुजिया जइसन पारंपरिक पकवान।
उसमा पेड़ा पपरची मोतीचुर –
पूस मं पेड़ा, पपरची अउ मोतीचूर के लड्डू देवी ला अर्पित करे जाथे।
मांघ मा मोहन भोगा –
माघ महीना मं ‘मोहन भोग’ यानी विशेष प्रसाद।
बारह महिना बारह भोगा –
साल भर के हर महीना भिन्न-भिन्न भोग के रूप मं माई के सेवा करे जाथे।
छत्तीसगढ़ी कथा: "देवी के बारहमासी भोग – कोरी नरियर के कथा"
शीर्षक: 🌺 "कोरी कोरी नरियर चढ़े" - बारह महिना के भोग अउ मइया के कृपा कथा 🌺
मूल स्रोत: www.cgjaslyrics.com
💫 कथा: देवी सेवा के मया
एक ठन गांव रहिस – केरा गांव, जिहां एक माई के सुंदर मंदिर रहिस। अकोला के छांव मं बने ओ मंदिर मं हर दिन भक्त लोग अपन मन के भक्ति ले आवत रहिस।
गांव के एक साधारण किसान "भूलवा" रोज एक कोरी नरियर ला धो-पोंछ के देवी ला चढ़ात रहिस। ओकर माने रहिस – "जइसने निर्मल मया रखबो, वइसने माई खुश होही।"
भूलवा हर महीना मं अलग-अलग भोग बनाके देवी के चरण मं चढ़ावत रहिस – चैत मं चुरमा, बैसाख मं बरफी, जेठ मं जलेबी अउ एही तरह बारह महिना बारह भोग।
माई ओकर श्रद्धा ले बहुते प्रसन्न होय रहीं। एक दिन सपना मं आय के कहिन – “भूलवा, तोर मया अउ सेवा ल देख के मैं तोर घर मा सुख-संपत्ति ले भर देहूं।”
अगले दिन ले भूलवा के किस्मत बदल गे। खेत मं पैदावार बढ़गे, घर मं सुख-शांति आ गे। गांव वाले मन भी देख के ओकर भक्ति ला अपनाय लगिन।
एही कथा ये भजन मं प्रकट होथे – कोरी कोरी नरियर चढ़े, लाली लाली चुनरी ओढ़े, अउ माई के सेवा बारह महिना तक चलता हे।
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