“रच डारे भर दिये भंडार | दिवेश साहू का नया छत्तीसगढ़ी जस गीत | CGJasLyrics.com”
रच डारे भर दिये भंडार
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गीत -रच डारे जस
गायक -दिवेश साहू
गीतकार -गौतम गुरूजी
म्यूजिक कंपनी -महतारी सेवा
वेबसाइट -www.cgjaslyrics.com
वेबसाइट ऑनर - केके पंचारे
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रच डारे भर दिये भंडार
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
उड़ान -हे जग के सिरमोतिन दाई अजब हवय ओ तोर चरिताई
हे जग के सिरमोतिन दाई अजब हवय ओ तोर चरिताई
किसम किसम के रंग मा दाई रंग डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
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अंतरा -1
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झाड़ झरोखा हरियर हरियर लता पेड़ के डाली ओ
बर पिपर अउ तुलसी लिम के जग म करे अधारी ओ
पानी बनाये पियास मिटाये नदिया नरवा कछारी ओ
पानी घलो मा जल के रहईया जिव बनाये चारी ओ
उड़ान -कस डारे ये ----------------ओ ओ
अपन मया के गांठ मा दाई कस डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
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अंतरा -2
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झाड़ झरोखा हरियर हरियर लता प्रेम के डाली ओ
बर पिपर अउ तुलसी लिम के जग में करे अधारी ओ
पानी बनाये पियास मिटाये नदिया नरवा कछारी ओ
पानी घलो मा जल के रहईया जिव बनाये चारी ओ
उड़ान -कस डारे ये --------------------ओ ओ
अपन मया के गांठ मा दाई कस डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
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अंतरा -3
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का महिमा मै फूल के गावव केसु मोगरा के फुले ओ
जेन दुनिया भर ला महकाये सावन झूलना झूले ओ
चिरई चिरगुन पंछी परेवना ये रचना कोन भूले ओ
होवत बिहनिया चीव चीव करथे मया के रस मा घोले ओ
उड़ान -कर डारे ये ये ---------------ओ ओ
ये धरती के हरा सिंगारी कर डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
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अंतरा -4
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कईठन रूप के जिव बनाये बेंदरा भालू बघवा ओ
कोनो खाये घास चाबे ना कोनो मॉस बर अघवा ओ
सब झन बर तै चारा बनाये दाल चना अउ गहुआ ओ
अपन अपन सब भाग ला पाके मेटाये पेट के भूखवा ओ
उड़ान -हर डारे ये ये ---------------ओ ओ
सबझन के दुःख पीड़ा हर डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
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अंतरा -5
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सबले अलग तोर रचना हे दाई ये मनखे के चोला ओ
जेन तोर गुण ला गावत रहिथे आस रखे सब तोला ओ
सब झन बर तै मया बगराये झन भुलाबे तै मोला ओ
मोरो पुराबे मन के मनौती भर देबे खाली झोला ओ
उड़ान -लिख डारे ये ये ---------------ओ ओ
गौतम तोरे महिमा दाई लिख डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
रच डारे भर दिये भंडार जग ला रच डारे
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गीत के अर्थ (छत्तीसगढ़ी में)
“रच डारे भर दिये भंडार” – मतलब, “तैं रचा दे हस अउ भंडार (खज़ाना) ले भर दहस।” गीत म “दाई” ला आदर अउ पूजा करत कहे गे हवय कि ओ मन हर चीज़ — धरती, पेड़-पौधा, पानी, जीव-जन्तु — ला बखूबी रचे हवय।
हे जग के सिरमोतिन दाई – “हे संसार के सबले महान रचयिता माँ”
“किसम किसम के रंग मा दाई रंग डारे” – तैं अलग-अलग रंग अउ रूप म सृष्टि ला सजाईस।
झाड़ झरोखा हरियर हरियर लता – पेड़-पत्ती, हरियाली के महिमा बताइस।
पानी बनाये पियास मिटाये, नदिया-नरवा-कछारी बनीस — ये सब के व्यवस्था दाई के रचना हे।
कईठन रूप के जिव बनाये, मानव हो चाहे बेंदरा, भालू, बघवा — तें सबके खातिर चारा-पानी उठझुडाय लाने हवस।
सबझन के दुःख पीरा हर डारे — दाई सबके दुख-दर्द दूर करथे।
मनखे के चोला – मनखे के रूप ला खास बनाइस, जे सबके मन मा भावना अउ भक्ति जगाही।
“दाई के भंडार – जग के रचना के कथा”
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🌱 पीरिचय
छत्तीसगढ़ के छोटे-से गांव भरमापुर म बने मन के घर-संग पहरे म सुरता ला रखके, जस गीत के स्वर हरदम गूंजत रहिथे। उ गीत हे — “रच डारे भर दिये भंडार।” इहाँ हर घर, हर कोना, नदिया, डोंगरी, गोठ – दाई के रचना के सब हिस्सा मन नवाँ जिंदा होथे।
गावं म एक गौतम नांव के जवान रहय, जेकर मन सृजन म रमाय रहय। ओकर घर के पैतीस बारी म फूल, तुलसी, नीम, पीपल, अउ जइसे सब्जी बगइचा…प लेकिन इ गौतम मन म एक शंका रहिस —
"का मंय रचयिता हवंव, नञ्च दाई हवंय रचया?"
करीबी संगवारी सीता, जेन खुद जस भजन गाथे, ओ दिन–रात गीत गुनगुनावत कहिथे:
> “रच डारे भर दिये भंडार, जग ला रच डारे…”
गौतम ओकर भीतर से उछलक, ओ गीत ल बतात जब – "ई सब कुछ खुद बनाई हे, का दाई?”
सीता मुस्कुरा के कहिथे – "गौतम दाई ह सिरमोतिन, ओ के चरन म सृष्टि पूरा भरो हवय। तें देख, सुन अउ महसूस कर।”
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🌿 अंतरा–1: - झाड़, झरोखा, लता–दलाली
वन–पहरी क न्योरान म घुस के गौतम मन हरियाली, झाड़–झरोखा, तितलियाँ देखथे। ओ गीत के पंक्तियां ओकर गुनगुनी म बजंथे:
> “झाड़ झरोखा हरियर लता, पेड़ के डाली…”
गौतम महसूस करथे – धरती म अपन माया हे, प्यार हे, बिभिन्न रंग–रूप हे।
ओ दिन घलो, तें सोचथे – “ये तो खुद मोर सुरता नई, दाई के माया हवय!”
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💧 अंतरा–2: - पानी, नदी, नरवा, कछारी
एक पहाड़ी नाला म जा के गौतम देखथे – नावा पानी जैसने झरना, नरवा म पियास पिघलात पानी अउ केचरी–कछारी म वापस धरती ला पानी देथे। गीत के लाइन आंखिन म आवत हे:
> “पानी बनाये पियास मिटाये…”
गौतम के मन म कस कसकर राहत हे – “ये व्यवस्था तो दाई के दया अय!”
🐾 अंतरा–3: - जीव–जन्तु–पक्षी–पशु
एक दुपहर, गौतम जंगल गेय। मोर–चिरई–पंछी–पेरेवना–बेंदरा–भालू–बघवा–मोर… उजागर पताथे। गाय–भैंस–भेड़…
> “कईठन रूप के जिव बनाये…”
गौतम हर जीव–जन्तु के प्रति अपन सम्मान जागृत महसूस करथे।
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🙏 अंतरा–4: - सब झन के दुःख–पीरा हराना
एक बुढ़वा करमा, जेकर जीवन रोग–दयालुता म गुजरे रहिस। गौतम ओकर संग हंसी–खुशी बांटत देखथे, करमा ला डार म सीधी साधी मुस्कान दिखथे।
गौतम के अंदर एक विश्वास जगथे –
> “दाई ह तो सब झन के दुःख पीरा हर डारे…”
ये हर सच्चाई हवय।
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🌟 अंतरा–5: - मानव रूप के विशिष्टता
गौतम अपन सब काम म आत्मा डारथे। खेत–बाड़ी, मनखे–मनौति, हिसाब-किताब, गीत–भजन सब जीव–धार्मिक आस्था म डूबथे।
> “सबले अलग तोर रचना हे दाई ये मनखे के चोला…”
गौतम खुद लिख डारथे ओ तेज–प्रेम–श्रद्धा के कविता:
> “गौतम तोरे महिमा दाई लिख डारे…”
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🚀 समापन–: सृजन, भक्ति, अउ कर्म
गौतम अब गाँव–गाँव जा के भजन गाथे, सीता–गौतम–दिवेश–गीत–मंच के टोली बनाथें:
उन्होंने गाँव के बच्चा–नौजवान–बुजुर्ग मन ला सिखाथें:
"हमर हर काम, हर गीत, हर अनुभव – सब दाई के रचना के हिस्सा हे, ओकर माया, शक्ति, करुणा हे."
गाने के माध्यम से, ओहर गाँव म साक्षरता, आत्मा जागरण, प्रकृति प्रेम और आस्था फैलात।
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✅ 4. निष्कर्ष
ये कथा अउ गीत सिखाथे कि सृष्टि, जीवन अउ मनुष्य – सब के बीच एक दिव्य जुड़ाव हवय।
छत्तीसगढ़ी भाषा आ गीत–कथा म अपन ओ रंग–रस हवय, जन–जागरित करथे।
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