दुर्गा रोत निकले
▶ गीत - दुर्गा रोत निकले ओ
▶ गायक - दुकालू यादव
▶गीतकार -संतोष झारिया
▶निर्माता -तिलक राजा साहू
▶निर्देशक -तिलक राजा साहू
▶लेबल - चन्दन म्यूजिक
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दुर्गा रोत निकले
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महामाई ले जोत निकले एक नहीं कई कोत निकले ओ -२
दुर्गा रोत निकले
ये दुर्गा रोत निकले ओ जाना हे नहाये नदिया रोत निकले
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अंतरा -1
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कोन माई के गड़े त्रिशूलिया
कोन माई के हार मईया -२
उड़ान - " कोन माई हां कसे कमरिया -२ "
मारत हे किलकार मईया
रोत निकले ओ
ये दुर्गा रोत निकले ओ जाना हे नहाये नदिया रोत निकले
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अंतरा -2
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महामाई के गड़े त्रिशूलिया,
शीतला के सोलह सिंगार मईया -२
काली माई हां कसे सिंगार -२
मारत हे किलकार मईया
रोत निकले ओ
ये दुर्गा रोत निकले ओ जाना हे नहाये नदिया रोत निकले
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अंतरा -3
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कोन मईया हे जस के लिखईया ,
कोन हे पालन हार मईया -२
उड़ान - " कोन माई हां गरजे भुईया "-२
जावय धारे धार मईया
रोत निकले ओ
ये दुर्गा रोत निकले ओ जाना हे नहाये नदिया रोत निकले
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अंतरा -4
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शारदा मईया जस के लिखईया
,धरती पालन हार मईया -२
उड़ान - " गंगा माई हां गरजे भुईया "-२
जावय धारे धार मईया
रोत निकले ओ
ये दुर्गा रोत निकले ओ
जाना हे नहाये नदिया रोत निकले
महामाई ले जोत निकले एक नहीं कई कोत निकले ओ -२
दुर्गा रोत निकले
ये दुर्गा रोत निकले ओ जाना हे नहाये नदिया रोत निकले
🌸 दुर्गा रोत निकले ओ – एक आस्था भरी छत्तीसगढ़ी कहानी 🌸
लेखक: के के पंचारे | स्रोत गीत: दुर्गा रोत निकले ओ | गायक: दुकालू यादव | गीतकार: संतोष झारिया
छत्तीसगढ़ म धरती केवल धान के कटोरा नई, बल्कि मइया के भक्ति के भी अनमोल थान हे। ए धरती म देवी के उपासना म गजब के श्रद्धा दिखे ला मिलथे। “दुर्गा रोत निकले ओ” ए गीत सिरिफ भजन नई, बल्कि ए म एक किस्सा छुपे हवय – मइया दुर्गा के दर्शन, जोत अउ नारी शक्ति के उर्जामयी रूप के।
🔥 महामाई के जोत: विश्वास के उजाला
गांव के लोगन कहिथें के जब संकट आवथे, तब मइया अपन जोत ले के धरती म अवतरित होथें। "महामाई ले जोत निकले, एक नहीं कई कोत निकले" – ए लाइन म दर्शावाय गे हवय के मइया अकेले नई, बल्कि अनगिनत रूप म, अलग-अलग देवी के रूप म, अपन भक्त मन के रक्षा बर आवथें।
जैसे-जैसे गांव म अकाल अउ बीमारी बढ़े लगिस, लोगन के मन म डर समा गे। तब गांव के बुजुर्ग एकठिन बात बताइस – "जैसे पुरखा कहिन हे, जब संकट घलो अइसन आवथे, तब महामाई रोत (नदी) के रास्ता ले निकल के गाँव म आवथें।" अउ ए बात के पुष्टि करत हवय ए गीत – "ये दुर्गा रोत निकले ओ, जाना हे नहाये नदिया रोत निकले।"
💫 कोन माई हे जस के लिखईया?
गीत म पूछे गे सवाल – "कोन माई के गड़े त्रिशूलिया? कोन माई के हार मइया?" – ए सवाल सिरिफ सवाल नई, बल्कि एक खोज हवय। ए खोज म भक्त अपन मइया के रूप ला जानना चाहत हवय। कभू उँहा त्रिशूल धारी दुर्गा मइया बन जाथें, कभू शिक्षा देई वाली शारदा मइया बन जाथें, तो कभू काली रूप म संसार के बुराई ले जूझथें।
ए प्रश्न अउ उत्तर के यात्रा एक भक्त के भक्ति अउ भावनात्मक संबंध ला दर्शाथे। उ गीत म कहिथे –
“कोन माई हां कसे कमरिया, मारत हे किलकार मइया” – मतलब मइया एक योद्धा हे, जेहा अपन भक्त बर धरती म उतर जाथें।
🌊 नदी – मइया के आवागमन के पवित्र रास्ता
छत्तीसगढ़ म नदी ला देवी के रूप म पूजा जाथे। नदिया ला पवित्र माने जाथे, अउ जऊन गीत म कहा गे – "जाना हे नहाये नदिया रोत निकले" – ए म इशारा हवय के मइया अपन शुद्ध रूप म नदी के किनारे ले निकथें। रोत निकले के अर्थ हे – मइया के परिक्रमा, एक पवित्र यात्रा, जऊन म लोग विश्वास के साथ सामिल होथें।
ए गीत म "नहाये" शब्द बहुत महत्व रखथे – एकर मतलब केवल शरीर के सफाई नई, बल्कि आत्मा के भी शुद्धिकरण हे। जब भक्त नदी म स्नान करथे अउ मइया के दर्शन करथे, त ओ समय ओ मन म पवित्रता अउ आस्था के एक नवा जोश भर जाथे।
🌹 महामाई, शीतला, काली, शारदा – नारी शक्ति के चार रूप
ए गीत म चार देवी के उल्लेख हवय:
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महामाई – शक्ति अउ संरक्षण के प्रतीक।
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शीतला मइया – रोग भगइया अउ जीवन के शुद्धिकरण के प्रतीक।
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काली मइया – अधर्म अउ बुराई से लड़ई करइया।
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शारदा मइया – ज्ञान अउ विवेक के देवी।
ए सब मइया मन के एक बात समान हवय – सबला अपन भक्त मन बर अपन रूप बदल-बदल के रक्षा करे ला आथें। एही बात ला गीत के उड़ान म बताइस गे –
"गंगा माई हां गरजे भुईया, जावय धारे धार मइया"
⚔️ मइया के किलकार – नारी शक्ति के गर्जना
गीत म एक बहुत सुंदर भाव हे –
“मारत हे किलकार मइया”
ए म अर्थ हे के मइया सिरिफ पूजा बर नई, बल्कि जब समय आवथे, तब ओ खुद लड़ाई लड़े म उतर जाथें। मइया के किलकार मतलब – ओहा आवाज करथें, चेतावनी देथें के अब अन्याय, अत्याचार नई चलही। ए संदेश खास करके समाज म नारी शक्ति के जागरण के प्रतीक बन जाथे।
🌿 दुर्गा रोत निकले – एक वार्षिक परंपरा?
गांव म मान्यता हवय के साल म एक बार दुर्गा मइया नदी के रास्ता ले निकथें, तब पूरा गांव म पूजा, भजन, अउ जागरण होथे। "दुर्गा रोत निकले" ए परंपरा के प्रतीक बन गे हवय। लोग बँधव संग, बाजा-गाजा ले, नदी किनारे जाथें अउ मइया के दर्शन करथें।
गीत के माध्यम से ए परंपरा ला नई पीढ़ी तक पहुँचाय जावत हे, जेकर माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर बन जाथे।
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