➻❥ गीत -काकर जंवारा मईया गली ले निकलगे ➻❥ गायक-दुकालू यादव ➻❥ गीतकार -संतोष झारिया ➻❥निर्माता -तिलक राजा साहू ➻❥CGJASLYRICS
माँ दुर्गा की स्थापना और विसर्जन भारतीय हिन्दू समाज में एक महत्वपूर्ण और उत्साहभरा त्योहार है, जो नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। यह त्योहार दुर्गा माता की शक्ति और प्रतिरोध के प्रति भक्ति का प्रतीक है। निम्नलिखित है माँ दुर्गा की स्थापना और विसर्जन की कार्यप्रणाली:
स्थापना (सप्तमी से दशमी तिथि):
कलश स्थापना: दुर्गा पूजा की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है। एक कलश को शुभ मुहूर्त में तैयार करके उसमें पानी, सुपारी, सिन्दूर, रोली, चावल, फूल, और बेतलनट को रखा जाता है। कलश को स्थापित करने के बाद, इसे पूजा के दौरान प्रणाम किया जाता है।
दुर्गा मूर्ति स्थापना: दुर्गा मूर्ति को धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, गंध, और नैवेद्य सहित विशेष पूजा विधि के अनुसार स्थापित किया जाता है। मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठापना के साथ पूजा जाता है जिसमें मन्त्रों का जाप और देवी के अलग-अलग रूपों का आराधना शामिल होती है।
नवमी पूजा और कन्या पूजा: नवमी को कन्या पूजा के रूप में एक विशेष पूजा होती है जिसमें नौ कन्याएं (योग्य और पवित्र बालिकाएं) बुलाई जाती हैं और उन्हें पूजा जाता है। इसमें विशेष रूप से नौ दुर्गा रूपों की पूजा की जाती है और उन्हें भोजन और धन दान किया जाता है।
विसर्जन (दशमी तिथि):
सिंदूर उत्सर्जन: दशमी को, माँ दुर्गा की मूर्ति को सिंदूर उत्सर्जन के साथ विसर्जित किया जाता है। यह पूजा के अंत में किया जाता है और इससे माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
धूप, दीप, फूलों की बरसात: माँ दुर्गा की मूर्ति को धूप, दीप, और फूलों की बरसात के साथ विसर्जित किया जाता है। यह पूजा का आदान-प्रदान होता है जिससे माँ की प्रतिमा को प्रेम और श्रद्धाभाव से विदाई दी जाती है।
प्रशाद वितरण:
विसर्जन के बाद, उपासकों को प्रशाद वितरण किया जाता है- माता का विसर्जन क्यों किया जाता है
माता दुर्गा का विसर्जन नवरात्रि के अंत में किया जाता है और इसमें विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व होता है। विभिन्न कारणों से माता का विसर्जन किया जाता है:
सांस्कृतिक महत्त्व: नवरात्रि के दौरान, माता दुर्गा की पूजा को नौ दिनों तक किया जाता है, जिसमें भक्त उनकी पूजा और आराधना करते हैं। विसर्जन का दिन अनुसार, भक्त देवी को उनके दिव्य स्वरूप से प्राकृतिक स्वरूप में लौटाने का कार्य करते हैं, जिससे सांस्कृतिक महत्त्व बढ़ता है।
शक्ति और अशक्ति का प्रतीक: दुर्गा पूजा के दौरान माता दुर्गा को महाशक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो शक्ति की संजीवनी है। विसर्जन के दिन, भक्त देवी को उनकी अशक्ति रूप में लौटाने का संकेत करते हैं, जिससे उन्हें अपनी सार्वभौमिक शक्तियों का अनुभव होता है।
समापन और नया आरंभ: नवरात्रि के विसर्जन के साथ, भक्त देवी की पूजा का समापन करते हैं और नए आरंभों के लिए तैयार होते हैं। यह सार्वभौमिक रूप से जीवन की चक्रव्यूह का प्रतीक है, जो नये शुरुआतों और संभावनाओं को सूचित करता है।
प्रकृति की शुभता: दुर्गा मा की मूर्ति को जल में विसर्जित करने के लिए आमतौर पर नदी, झील या समुद्र का चयन किया जाता है। यह स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त प्रकृति के प्रति भक्तों का समर्पण दिखाता है।
इस प्रकार, माता दुर्गा का विसर्जन एक पौराणिक, सांस्कृतिक और पर्वीय परंपरा है जो भक्तों को धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से जोड़ती है
माँ दुर्गा को कुँवार (कन्या) और चैत्र मास (चैत) में पूजा जाता है, और इसमें विशेष माहत्व होता है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें धार्मिक, पौराणिक, और सांस्कृतिक पहलुओं का महत्त्व शामिल है:
1. कन्या पूजा (कुँवार पूजा):
देवी का रूप: माँ दुर्गा का रूप कन्या और युवति का है, और विशेषकर नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, उन्हें कन्या रूप में पूजा जाता है। कन्या पूजा के दौरान नौ युवतियों की पूजा की जाती है, जिन्हें माँ दुर्गा की स्वरूपित भक्ति में शामिल किया जाता है।
नवरात्रि की शक्ति: नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान नौ रूपों में दुर्गा की पूजा करने का परंपरागत तरीका है, जो इन नौ युवतियों की पूजा के साथ साथ देवी के नौ रूपों की आराधना का एक हिस्सा भी है।
प्रतिष्ठान और आशीर्वाद: कन्या पूजा से इन नौ युवतियों को माँ दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और उन्हें देवी की प्रतिष्ठा का अवसर मिलता है।
2. चैत्र नवरात्रि:
नवरात्रि का अन्त: चैत्र नवरात्रि नवरात्रि के अंत में आता है, जो विशेषकर देवी के नौ रूपों की पूजा के साथ होता है। इसमें दुर्गा पूजा की अवधि भी नौ दिनों की होती है और दशमी के दिन दुर्गा विसर्जन होता है।
ऋतुराज बसंत का आगमन: चैत्र महीना वसंत ऋतु का होता
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काकर जंवारा मईया गली ले निकलगे
काकर जंवारा हां रिसाय
भवानी मोर काकर जंवारा हां रिसाय
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अंतरा -1
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स्वेत जंवारा मईया गली ले निकलगे
मारन जंवारा हां रिसाय
भवानी मोर मारन हां रिसाय
ये मोर मईया मारन हां रिसाय
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अंतरा -2
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निकलव भवानी मोरे अब तो ले
महल म हुमन जयाय
भवानी मोर महल म हुमन जयाय
ये मोर मईया महल म हुमन जयाय
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अंतरा -3
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सातो ग्वालिन तोरे आरती उतारे ओ
मालिन फूल बरसाय
भवानी मोर मालिन फूल बरसाय
ये मोर मईया मालिन फूल बरसाय
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अंतरा -4
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काकर जंवारा मईया नरियर मागत हे
काकर जंवारा जीव कटार
भवानी मोर काकर जंवारा जीवकटार
ये मोर मईया काकर जंवारा जीव कटार
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अंतरा - 5
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स्वेत जंवारा मईया नरियर मागत हे
मारन जंवारा जीव कटार
भवानी मोर मारन जंवारा जीव कटार
ये मोर मईया मारन जंवारा जीव कटार
ये मोर मईया झारिया माथ नवाय
ये मोर मईया जस पचरा ल गाय
ये मोर मईया झारिया माथ नवाय
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