कामा सिरजाबो मईया रईया रतनपुर | दुकालू यादव का छत्तीसगढ़ी हिंगुलाज भक्ति गीत | Jas Geet Ratanpur"
👉गीत -कामा सिरजाबो मईया रईया रतनपुर
👉गायक -दुकालू यादव
👉संगीत -राजेश साहू
👉गीत -पारम्परिक जस
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कामा सिरजाबो मईया रईया रतनपुर
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कामा सिरजाबो मईया रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
कामा सिरजाबो हिंगुलाज हो
मईया कामा सिरजाबो हिंगुलाज हो
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अंतरा -1
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माटी सिरजाबो मईया रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
पथरा सिरजाबो हिंगुलाज हो
मईया पथरा सिरजाबो हिंगुलाज हो
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अंतरा -2
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कामा बइठारव मईया रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
कामा बइठारव हिंगुलाज हो
मईया पर्वत बइठारव हिंगुलाज हो
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अंतरा -3
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धरती बइठारव मईया रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
पथरा बइठारव हिंगुलाज हो
मईया पर्वत बइठारव हिंगुलाज हो
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अंतरा -4
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कामा पोताबो मईया रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
कामा पोताबो हिंगुलाज हो
मईया कामा पोताबो हिंगुलाज हो
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अंतरा -5
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चन्दन पोताबो मईया रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
बंदन पोताबो हिंगुलाज हो
मईया बंदन पोताबो हिंगुलाज हो
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अंतरा -6
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कामा बनावव मोर रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
कामा बनावव हिंगुलाज हो
मईया बंदन पोताबो हिंगुलाज हो
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अंतरा -7
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हाथ जोड़ बनावव मोर रईया रतनपुर वो
रईया रतनपुर वो रईया रतनपुर वो
माथ बनावव हिंगुलाज हो
मईया माथ बनावव हिंगुलाज हो
कहानी: "मईया के माटी ले पर्वत तक"
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला के एक छोटे से गांव में, रतनपुर के पास, एक बुजुर्ग महिला बाई बिसाहू, हर रोज़ सूरज निकलते ही नहा धोकर मां हिंगुलाज के टूटे-फूटे मंदिर में दिया बाती करने जाती थी। यह मंदिर अब पुराना हो गया था, दीवारें झुक गई थीं, छत से बूंदें टपकती थीं, और मंदिर के चारों ओर झाड़ियाँ उग आई थीं। फिर भी बाई बिसाहू जैसे गांव के बहुत से भक्त हर रोज़ वहां पूजा करने आते थे।
बिसाहू के मन में एक ही सपना था — "मंय जिनगी भर मईया बर सेवा करे हंव, फेर अब मां के मंदिर ला फेर ले सिरजाए के चाही।"
लेकिन गांव गरीब था। रोज़ी-रोटी के लिए मेहनत मजूरी में ही पूरा जीवन कट रहा था। मंदिर बनवाना तो जैसे असंभव सपना था। फिर एक दिन गांव के जसगीत मंडली वाले युवा – सुखलाल, लछमन, सीता, और गोपी – बाई बिसाहू से मिलने आए।
> "बाई, हमन तय कर लिए हवन, हम मां के मंदिर ला फेर बनाबो। माटी ले, पत्थर ले, पथरा ले... जइसने बन सकय।"
बाई के आंख भर आइस। उसने माथा पर हाथ धरके आशीर्वाद दीस – "मईया ह तोर मन के भावना जानत हे, ओही सबले बढ़िया काम करहू बेटा..."
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🙏 कामा सिरजाबो – निर्माण की शुरुआत
गांव वाले धीरे-धीरे जुट गए। किसी ने दो ट्रॉली मुरूम दी, किसी ने अपना बैलगाड़ी दिया, कोई मजदूरी छोड़कर मजदूर बन गया। सुखलाल रोज़ शाम को भजन गाता – “कामा सिरजाबो मईया, रईया रतनपुर…” और उसका स्वर गांव-गांव गूंजने लगा।
बच्चे भी मिट्टी ढोने लगे। औरतें लिपाई-पुताई करने लगीं। महीने भर में एक छोटा सा चौकोर मंदिर खड़ा हो गया – पर अब बात आई कि "माई कहां बइठही?"
सीता ने कहा – "माई ह पहाड़ के देवी आय, पर्वत ऊपर बइठे के हक़दार हे।"
तो सबने पास के टीले पर मंदिर को ऊंचा करने का निर्णय लिया।
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🪔 मईया पर्वत बइठारव
तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद, एक सुंदर ऊँचाई पर मंदिर तैयार हो गया। गांव की बूढ़ी आंखों से आंसू झरने लगे। पूजा का दिन तय हुआ – चैती नवरात्रि के अष्टमी।
वो दिन आया – पूरा गांव जगमगा रहा था। लाल झंडा, झालर, पीतल के घंटे, और फूलों की माला से मंदिर सजा था। डुगडुगी बज रही थी – "कामा बइठारव मईया, रईया रतनपुर"
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🌼 पोताबो: चंदन और श्रद्धा से माँ की सेवा
मईया की मूर्ति को चंदन से पोता गया। सीता और गांव की महिलाएं गा रहीं थीं – “चन्दन पोताबो मईया, रईया रतनपुर... बंदन पोताबो हिंगुलाज हो...”
इस गीत में केवल चंदन नहीं, श्रद्धा पोती जा रही थी। भावनाएं पोती जा रही थीं। एक-एक शब्द मां के प्रति आस्था से भीगा था।
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🕉️ माई बनावव मोर – श्रद्धा से रची काया
मंदिर बन चुका था लेकिन सुखलाल की आंखों में अब भी बेचैनी थी।
> “अब मंदिर बने हे, फेर हमन मां के जस ला घर-घर पहुंचाना हे। जइसे हमर माटी के गीत ह, ओइसने माई के भक्ति ह गांव-गांव तक जाही।”
उसने भजन मंडली बनाई और गांव-गांव जसगीत गाने निकल पड़ा:
> “हाथ जोड़ बनावव मोर रईया रतनपुर वो… माथ बनावव हिंगुलाज हो…”
गांव वाले साथ हो गए, और मां हिंगुलाज की भक्ति की गूंज पूरे अंचल में फैल गई।
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🌹 भावनात्मक मोड़ – बाई बिसाहू की अंतिम इच्छा
पूजा के दसवें दिन, बाई बिसाहू बीमार पड़ गई। गांव वाले सब देखने आए। उसने कांपती आवाज़ में कहा –
> “मंय अब जाय बर तियार हंव बेटा… फेर खुशी ये बात के हे कि अब मईया बर कामा सिरजाए गे हे… मंय तो अब ले मइया के चरण म बइठेंव।”
बाई की आंखें मूंद गईं… और सब रो पड़े। सुखलाल ने उसी दिन जसगीत में नया पंक्ति जोड़ा:
> "धरती बइठारव मईया, रईया रतनपुर…"
"बाई बइठारव मइया, हिंगुलाज हो…"
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🔔 कहानी का संदेश
इस गीत और कहानी के जरिए यह बताया गया है कि श्रद्धा और संकल्प से कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। गरीब गांव वालों ने अपनी मेहनत और भक्ति से मां हिंगुलाज का मंदिर सिरजा दिया – माटी से पर्वत तक।
"कामा सिरजाबो" केवल मंदिर बनाने की बात नहीं है – यह एक भावनात्मक यज्ञ है, जहां हर व्यक्ति ने अपनी श्रद्धा, समय, सेवा और स्नेह चढ़ाया।
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निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ की यह कथा और गीत सिखाता है कि "जहां भक्ति होती है, वहां शक्ति अपने आप प्रकट होती है।" मां हिंगुलाज जैसे देवी स्वरूपों के लिए सिर्फ चांदी-सोने के मंदिर नहीं, दिल से बने “माटी मंदिर” ज्यादा पावन होते हैं
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