नदिया के तीरे तीर दुई जोड़ी बईला | पारम्परिक छत्तीसगढ़ी जस गीत | मइया भक्ति गीत

 





✅  पारम्परिक जस गीत लिरिक्स 

✅  गीत - नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला

✅ ब्लॉगर - कैलाश पंचारे 

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नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला

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नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

उड़ान -" एक धवरा एक हावय  लाल  हो माया मोर   

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

(१ ) कहा वाले आवय , खैर  सुपड़िया -२ 

खैर  सुपड़िया-२ हो मैया -२ 

उड़ान -"  कहा वाले  बंगला के पान  हो माया मोर "-२ 

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

(२ ) डोंगरी ले आवय , खैर  सुपड़िया -२

खैर  सुपड़िया-२ हो मैया -२  

उड़ान -"  बरहिन   बंगला के पान  हो माया मोर "-२ 

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

(३ ) कामा  आवय खैर  सुपड़िया -२ 

खैर  सुपड़िया-२ हो मैया -२ 

उड़ान -" कामा  ये    बंगला के पान  हो माया मोर "-२ 

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

(४ ) गाड़ी  में आवय खैर  सुपड़िया -२ 

खैर  सुपड़िया-२ हो मैया -२ 

उड़ान -" टोकरी में ये   बंगला के पान  हो माया मोर "-२ 

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

(५ )  का काम  आवय हो मैया ,खैर  सुपड़िया -२ 

खैर  सुपड़िया-२ हो मैया -२ 

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 

(६ )पूजा काम आवय हो मैया,खैर  सुपड़िया -२ 

खैर  सुपड़िया-२ हो मैया -२ 

उड़ान -" माता खावय बंगला के पान  हो माया मोर "-२ 

नदिया के तीरे  तीर दुई  जोड़ी बईला -२ 


अर्थ (Meaning) – छत्तीसगढ़ी म 


“नदिया के तीरे तीर दुई जोड़ी बईला” माने– नदी के किनारे दूनो ओर कतको जोड़ी (मोर-काउंजर जोड़ी) बइठे रहिन हे।

गीत के उड़ान– “एक धवरा एक हावय लाल हो माया मोर” म ये भाव हे कि हर कोनो जोड़ी पर हमर माया, हमर श्रद्धा जुड़ गे हे। “खैर सुपड़िया” माने– *“अच्छा हो, भला-अच्छा हो, हे मइया!”*


हर अंतरे म नवा दृश्य दिखाय गे हे– बंगला के पान, डोंगरी ले आवय, कामा, गाड़ी, पूजा काम– ए सब संबंध म, माया मोर– हमर माया, हमर लगाव ये दृश्य संग गहरे हे।


> जस गीत या “यश गीत”, छत्तीसगढ़ म देवी-देवता के भक्ति म गाए जाथे, विशेष करके नवरात्र म  । ए गीत घलो भगिनी-बंधु के मिलन, आस्था, अउ प्रकृति के बीच के लय ला जाहिर करथे।





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📝  – छत्तीसगढ़ी कहानी


🌿 1. पर्यावरण अउ पृष्ठभूमि


छत्तीसगढ़ के बघेलखंड म बसे छोटे गाँव बिरिहा म बड़का नदिया बगथे– नदिया। नदी के तीरे म गहिरा हरियाली, बगर-बंधुर, उमंग भरी मिट्टी अउ जस गीत के गूंज पुरे ठउरो म गूंजत रहय।


बंसी (लइका) अउ बंसी के संगी– चंदू–नंदिनी, शरद–शिल्पा, रमेश–शांति—सब गरमी के जबरदस्त दुपहरिया, नदी किनारे झूला झुलत रहय। ओ जम्मो जोड़ी– “नदिया के तीरे तीर दुई जोड़ी बईला”।



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👫 2. पहली अंतरे – देखा मन मुरझाय हे


पहिली दृश्य– “एक धवरा एक हावय, लाल हो माया मोर”।

बंसी–चंदू कहिथे– “ए रंग, ए प्यार– नदी के किनारे, हमर संसार के लाल रंग ह मोर माया ला दिखाई देथे।”


स्वर लय पर, नदी किनारे चंदा के पहली किरणें, घाम अउ छांव– सब माया के आलोक म नाचा लगा देथें।



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🙏 3. “खैर सुपड़िया” – आशीर्वाद लेवत


(1) कहा वाले आवय, खैर सुपड़िया हो मइया

यहां अउ कुछ दिन पहिली बियाह करे जोड़ी– रमेश–शांति अय।

गाँव के बूढ़े-सजग मन– “खैर सुपड़िया” कहिके उनका आशीर्वाद देथें– “रमेश हो शांति– दूनो बर किर्रा-अच्छा होअय”।


(2) डोंगरी ले आवय…

यो गीत म पहाड़ी दृश्य म हरेक जोड़ी कुछ नवा अनुभव करत दिखत हे। पहाड़ी जैसे बड़का परीक्षण रेंगना, फेर माया मोर– माया रहीथे।




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🌄 4. “कामा” – जीवन के मंजिल


(3) कामा आवय…

कामा माने– कामधेनु, जीवन के उद्देश्य, कभू मंदिर के निकट, कभू खेत के बीच– वोकरे करीबी म प्रेम ला दर्शाय गेय हे।


(4) गाड़ी में आवय…

गाड़ी– यात्रात्मक जीवन, परिवार, समाज। एहा दर्शाय देथे कि प्रेम हे– साधारण जीवन के परे म घलो– खेत, त्योहार, पूजा, यात्रा– सब म लहरे।




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💐 5. पूजा काम – आध्यात्मिक अंतलेख


(6) पूजा काम आवय…

ए अंतरे दर्शायथे कि प्रेम-अनुराग– जीवन संग हे, फेर पूजा, मइया के आशीर्वाद भी उतनेच जरूरी हे।


“माता खावय बंगला के पान हो माया मोर”–

यहां बंगला के पान– देवी के आहार के रूप म– माया के रस, आस्था– सब जुटाय जाथे। देवी के पूजा म मान्यता हे कि देवी स्वयं अन्न ग्रहण करथें; ओमा सबो माया– भूखे मन ला तृप्त करथे।



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🌟 6. भावनात्मक उत्कर्ष – “माया मोर”


“उड़ान”– हर अंतरे म भवभाव– “माया मोर”– व्यक्ति के भीतरी माया, श्रद्धा अउ शिवर– अलग-अलग दृश्य म एक रूप म प्रकट होत हे।


हर जोड़ी– चंदू–बंसी, शरद–शिल्पा, रमेश–शांति– सब घलो अपन-अपन भावना ल “माया मोर” संग जोड़थें।



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🧡 7. रसिक परिणति


नदी किनारे रात म जब धुन मंद होथे, नदी के ओस अउ लय सब चैन–लय प्रदर्शित करथे।


“नदिया के तीरे तीर दुई…”– ये गीत नदी म प्रतिबिंबित जोड़ी मन के बीच के प्रेम-आस्था ल ओजत करथे।


अगला बिहान– जोड़ी मन फेर गीत गावत नदी बइठे रहें। ओ मन गाने–

“खैर सुपड़िया…”– “माया मोर…”–

मानो सृजन, संगम अउ प्रेम के अटूट त्रिकोटा बन गे हे।



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🔚 8. समापन – लोक संस्कृति के पूंछ


छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म, नदिया के तीरे– पूजा– मिलन– प्रेम– आस्था– सब एक संग जुड़ल हे। जस गीत म देवी-देवता, नदी, जोड़ी, पूजा, माया के एक संगम घलो बन गे हे।


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