दिया बरगे हो रईया रतनपुर मा | कांतिकार्तिक यादव का छत्तीसगढ़ी भक्ति गीत कथा सहित
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गीत -दीया बरगे ओ
गायक -कांतिकार्तिक यादव
संगीत -ओ पी देवांगन
वेबसाइट ऑनर -के के पंचारे
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दीया बरगे ओ रईया रतनपुर मा
दीया बरगे ओ रईया रतनपुर मा
रईया रतनपुर माया रईया रतनपुर माया हो
उड़ान -"दिया बरगे हो --ओ रइया रतनपुर म "
अंतरा -1
कोन कोड़ावे ताल सगुरिया
कोन बधावे ओके बांध ओ
कोन लगावें घन अमरइया
कोन भये रखवाल हो -2
उड़ान -"दिया बरगे हो --ओ रइया रतनपुर म "
अंतरा -2
राम कोड़ावे ताल सगुरिया
लखन बधावे ओके बांध ओ
सीता लगावें घन अमरइया
लगुरे भये रखवाल हो -2
उड़ान -"दिया बरगे हो --ओ रइया रतनपुर म "
अंतरा -3
कोन बरन हे ताल सगुरिया
कोन बरनओके बांध ओ
कोन लगावें घन अमरइया
कोन भये रखवाल हो -2
उड़ान -"दिया बरगे हो --ओ रइया रतनपुर म "
अंतरा -4
स्वेत बरन हे ताल सगुरिया
करिया बरनओके बांध ओ
हरा बरन हे घन अमरइया
लाल बरन रखवाल हो -2
उड़ान -"दिया बरगे हो --ओ रइया रतनपुर म "
अंतरा -5
पांच भगत मिल तोरे जस गाये जय जय होये तुम्हार हो
कांतिकार्तिक संग मौनी लाला केवल सरन तुम्हार हो
उड़ान -"दिया बरगे हो --ओ रइया रतनपुर म "
दिया बरगे हो रईया रतनपुर मा" – एक आध्यात्मिक कथा 🌼
लेखक: मौनी लाला | गायक: कांतिकार्तिक यादव | संगीत: ओ पी देवांगन
📍 वेबसाइट: www.cgjaslyrics.com | 📝 ऑनर: के के पंचारे
✨ कथा परिचय:
छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में भक्ति संगीत के माध्यम से देवी-देवताओं के प्रति आस्था और श्रद्धा को प्रकट करने की परंपरा बहुत पुरानी है। "दिया बरगे हो रईया रतनपुर मा" एक ऐसा ही गीत है, जो दीपक के समान उजास फैलाता है। यह गीत सिर्फ़ गीत नहीं, एक कथा है — एक भक्ति यात्रा है — जो रतनपुर की पुण्य भूमि में घटित होती है।
🌺 रतनपुर – भक्ति के उजास मं
रतनपुर, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में बसा एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हे। ये रतनपुर भैरव बाबा, महामाया देवी, और शुद्ध सनातन आस्था के केंद्र के रूप में जाना जाथे। "दिया बरगे हो रईया रतनपुर मा" ये गीत रतनपुर के उसी पवित्रता ला उजागर करत हे।
मुखड़ा मं "दीया बरगे हो रईया रतनपुर मा" ये पंक्ति संकेत करथे के जैसे एक साधक के हृदय मं भक्ति के दीप जल गे हो, अउ वो रतनपुर के पंथ मं निखर गे हे।
🌿 पहला दृश्य: कोन कोड़ावे ताल सगुरिया?
गीत के पहिला अंतरा मं सवाल उठाय गे हे - "कउन कोड़ावे ताल सगुरिया?"
ये सवाल प्रकृति के बनावट अउ लोकसंस्कृति के जड़ ला खोजे के कोशिश करथे। तालाब, अमरईया (आम के पेड़), अउ बंधान के माध्यम से ये जनक भावना व्यक्त करथे के प्रकृति खुदे भगवान के उपहार आय।
"कउन भये रखवाल हो?" — ये सवाल भक्ति भावना के रक्षा बर उठाय गे हे। जब जीवन मं कोई संकट आवथे, तब कोन भगवान ह हमर रखवारी करथे? उत्तर गीत के अगले अंतरा मं मिलथे।
🌿 दूसरा दृश्य: राम-लखन-सीता – त्रेतायुग के सन्देश
"राम कोड़ावे ताल सगुरिया, लखन बधावे ओ के पार हो"
ये अंतरा बताथे के रामचंद्र जी, लक्ष्मण अउ सीता मइया के पवित्र कर्मभूमि हवय। राम ह जीवन मं धर्म के स्थापना करे रिहिस, तालाब बनवाइस, समाज ला संरचना देइस।
सीता मइया ह अमरईया लगाए के रूप मं मातृत्व के स्नेह अउ जीवनदायिनी प्रकृति के प्रतिनिधित्व करथे। अउ लक्ष्मण ह रक्षा के दायित्व निभाथे — "लगुरे भये रखवाल हो" — यानी भक्त के जीवन मं जब संकट आवथे, तब लक्ष्मण समान शक्ति रक्षा करथे।
🌿 तीसरा दृश्य: कोन बबरन हे?
तीसरे अंतरा मं फेर सवाल उठथे — "कोन बबरन हे ताल सगुरिया?"
ये एक गूढ़ संकेत आय। "बबरन" मतलब पहचान करन वाला — यानी कोन-कोन ह भक्ति के गूढ़ रहस्य ला जाने हे? ये सवाल हर साधक के अंतरात्मा मं उठथे, जब वो अपने भीतर झांकथे।
🌿 चौथा दृश्य: रंग के प्रतीक
"श्वेत बरन हे ताल सगुरिया, करिया बरन ओके पार हो"
रंगों के माध्यम से प्रकृति अउ जीवन के विविध रूप दिखाय गे हे। श्वेत मतलब पवित्रता, करिया मतलब संकट, हरा मतलब समृद्धि, अउ लाल मतलब शक्ति।
ये पंक्तियां भक्ति के सफर मं विविध अनुभव ला दर्शाथे — कहीं शांति, कहीं अंधकार, कहीं हरियाली के उमंग, तो कहीं संकट मं रक्षा के लालिमा।
🌿 पाँचवा दृश्य: पाँच भगत और पूर्ण समर्पण
"पांच भगत मिल तोरे जस गाये जय जय"
पाँच भगत, पांच तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) के प्रतीक भी माने जा सकते हैं। जब सब तत्व एक संग होके भक्ति मं लीन हो जाथे, तब "जय जय" के गूंज उठथे। ये अंतरा समर्पण के चरम रूप हे।
"केवल शरण तुम्हार हो" — ये कहिके गीतकार मौनी लाला ह ये जताय हें के संसार के सब दुख-सुख मं आखिरकार भगवान के चरण मं शरण ही सबसे बड़ी शांति हे।
🕉️ आध्यात्मिक अर्थ
"दीया बरगे हो" – दीप जलाने के दो अर्थ होथे:
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बाहरी दीप – मंदिर मं जलाय गे दीया, जऊन से श्रद्धा प्रकट होथे।
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भीतर के दीप – आत्मा के भीतर के ज्योति, जऊन से ज्ञान, भक्ति अउ समर्पण के प्रकाश निकलथे।
रतनपुर मं "दीया बरगे" मतलब हे के भक्त अपन मन के अंधकार ला हटाके, ज्ञान अउ श्रद्धा के उजास ले रतनपुर जाथे, जिहां



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