गीत -दाई दयाली वो / स्वर- भरत जाटव / गीतकार -स्व.चंद्रकांत बघधर्रा
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गीत -दाई दयाली वो
स्वर- भरत जाटव
गीतकार -स्व.चंद्रकांत बघधर्रा
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दाई दयाली वो
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दाई दयाली वो तोला नेवता हे अवो तोला नेवता -२
उड़ान -" हो महीना आषाढ के संग चइत कुँवार के "-2
तोला नेवता हे अवो तोला नेवता
दाई दयाली वो तोला नेवता हे अवो तोला नेवता -२
(1 ) जुरयाइन जुरमिल के जम्मो गांव के लईका सियान
संगी सेउक ले ढोल मजीरा ,लागे माई बजान
उड़ान -" हो माने मनौती त बनहि बनौखी -2
तोला नेवता हे अवो तोला नेवता
(२) यहो आवव आवव बइठव जननी शीतल जल भर लायेव
यहो केरा खाम के मढ़वा गड़ा के नीम डारा जेमा छायेव
उड़ान -" हो पवन पुरवईया हे चवर डोलईया "-२
तोला नेवता हे अवो तोला नेवता
(3 ) यहो कांचा पक्का मिझरा जेवन तोर सखरा म मदाहू
यहो गरीबहिन शीतलंग के तोरो निदरी सुघ्घर जडाहु
उड़ान -" हो रिसहिन रिशाबे झनि बघ धर्रा ले ऐको कनि "-2
तोला नेवता हे अवो तोला नेवता
🌺 दाई दयाली वो – एक लोक-आस्था के नेवतारी गीत के पीछे के कहानी
छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति म दाई-दऊ के गीत मन के खास महत्व हे। ए गीत सिरिफ भक्ति के रूप म नइ, बल्कि गांव-गंवई के आपसी जुड़ाव, लोक परंपरा अउ सामाजिक भावनाके गोहर-पुकार आय। "दाई दयाली वो तोला नेवता हे अवो" ए गीत घलो एही परंपरा के जीवंत रूप आय, जऊन ला स्वर दिहिन हे भरत जाटव अउ लिखे रहिन हे स्व. चंद्रकांत बघधर्रा जी।
🌼 कथा के आरंभ – महीना आषाढ़ ले नेवता तक
गीत के आरंभ म जऊन पंक्ति आय —
"दाई दयाली वो तोला नेवता हे अवो तोला नेवता",
एमा भक्त दाई ला अपन गांव, अपन घर बुलावत हे। आषाढ़, चैत अउ कुँवार जइसे महीना मन के नाम ले ये बतावत हे के गांव म खास तिहार, मेला, अउ मनौती पूरा करे बर नेवता भेजे गे हवय।
गांव के मनखे बर ये समय अउ गीत, एक धार्मिक अउ सामाजिक समागम के अवसर होथे, जिहां जम्मो गांव के मनखे एकजुट होके देवी दाई के आराधना करथें।
🥁 गांव के एकता अउ साज-बाज
गीत के पहिली अंतरा म ए कहे गे हवय —
"जुरयाइन जुरमिल के जम्मो गांव के लईका सियान",
मतलब गांव के जम्मो सियान, लईका, संगवारी मिलके दाई के पूजन म जुटे हवंय।
"ढोल मंजीरा, संग बाजा" के संग पूजा के माहौल म एक उत्सव के रंग घुल जाथे।
एक मनौती पूरी होए के बात कहे गे हे —
"हो माने मनौती त बनहि बनौखी" — मतलब जऊन मन म निहित आस हे, दाई दयालू बन के ओला पूरा करही।
🍃 नेवता अउ सादगी के आतिथ्य
दूसर अंतरा म भक्त दाई ला सादगी भरा नेवता देथे।
"बइठव जननी शीतल जल भर लायेव" – ए पंक्ति बताथे के कैसे गांव वाले सादगी ले, सच्चे भाव ले दाई ला बइठाथें अउ शीतल जल, नीम डारा के छांव, केरा खाम के मढ़वा मा आसन देवत हें।
"पवन पुरवईया हे चंवर डोलईया" – एहा प्राकृतिक सौंदर्य, हवा के शीतलता अउ दाई के स्वागत ला अउ घलो भव्य बनाथे।
🍚 मिझरा भोग अउ भक्तिन के भाव
तीसरी अंतरा मा भक्त भाव म कहिथें —
"यहो कांचा पक्का मिझरा जेवन तोर सखरा म मदाहू",
अर्थात गांव के सादा लेकिन सच्चा भोजन (मिझरा) – चांवल, दाल, सब्जी – सब प्रेम ले परोसे जाथे। गरीबन के घर म ले सुघ्घर निदरी, बिछावन देके दाई के सेवा करथें।
गीतकार कहिथें —
"रिसहिन रिशाबे झनि बघधर्रा ले ऐको कनी",
यानी दाई, चाहे तोर सेवा साधन कम होवय, लेकिन ओमा सच्चा भाव हावे, रिस मत होवव।
🌹 दाई दयाली – श्रद्धा, संस्कृति अउ सामाजिक समरसता के प्रतीक
ए पूरा गीत केवल देवी आराधना नई, बल्कि गांव के भाईचारा, सादगी, सेवा, श्रृद्धा अउ सामूहिक परंपरा के घलो प्रतीक आय। छत्तीसगढ़ म ए जइसन जसगीत, दाई गीत, नेवतारी गीत मन समाज म नई पीढ़ी ला घलो अपन जड़ ले जोड़े के काम करथें।
"दाई दयाली वो तोला नेवता हे" – ए पंक्ति बार-बार गावय जाथे, जइसने गा गा के श्रद्धा ले दाई के मन म बइठाए जाथे।
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